कबीर जयंती : जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी





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परमसंत कबीर दास जी अईसन कलम के बीर हरे जे ह अपन समय के समाज म चलत धरम अउ जाति के भेदभाव, कुरीति, ऊंचनीच,पाखंड, छूवाछूत अउ आडंबर के बिरोध म अपन अवाज ल बुलंद करिस अउ समाज म समता लाय खातिर अपन पूरा जीवन ल लगा दीस । ओ समय म लोग-बाग मन एक तरफ तो मुस्लिम राजा मन के अत्याचार म त्रस्त राहय त दूसर तरफ हिंदू पंडित मन के कर्मकांड, पाखंड अउ छुवाछुत ले। वईसे तो कबीर दास जी ह पढ़े-लिखे बर नइ जानत रहिस हे, फेर वो ह जउन भी बोलय ओला ओकर सिस्य मन तूरते लिख के रख लय, उही ह आज हमर बर ओकर धरोहर हे।
कबीर दास जी के जनम के बारे म कई ठन बात पढ़े-सुने बर मिलथे, कोनो कहिथे- वो ह विधवा बम्हनीन के लईका रहिस हे जउन ह रामानंद जी के आसिरबाद ले होय रहिस हे जे ह विधवा ल सधवा नारी के धोखा म दे डरे रहिस हे, जेला वो विधवा बम्हनिन ह लोक लाज के डर म कांसी तीर के गांव लहरतारा के तरिया म छोड़ दे रहिस हे, जेला एकझन जुलाहा परवार ह पालीस हे। कोनो कहिथे वो ह मुसलमान लईका रहिस हे।अउ कबीरपंथी मन तो लहरतारा के तरिया के कमल फूल म अवतरे लईका हरे कहिथे। वईसने ओकर जनमकाल म घलो मतभेद हे, कोनो संवत् १४५५ कहिथे, त कोनो संवत् १४५१-५२ के बीच कहिथे । कबीर दास जी के बिहाव ह बैरागी कन्या ‘लोई’ संग होय रहिस हे, जेकर ले एक बेटा ‘कमाल’ अउ एक बेटी ‘कमाली’ होय रहिस हे । कबीरपंथी मन कहिथे के कबीर दास जी के बिहाव नइ होय रहिस हे, कमाल ओकर सिस्य अउ कमाली अउ लोई ओकर सिस्या रहिन हे ।
कबीर दास जी ह अपन आप ल जुलाहा मानय, एक जघा कहे घलो हे –
जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी ।
कबीर दास जी ह रामानंद जी ल अपन गुरू मानय, राम नाम के दिक्छा पाय के बाद कबीर दास जी ह हमेसा राम नाम जाप म डुबे राहय,
“पीवत राम रस लगी खुमारी”।
कबीर दास जी ह अपन समय म धरम म चलत पाखंड के बिरोध करके समाज ल बड़ झकझोरिस, जइसे:
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़।
कांकर पाथर जोर के, मस्जिद लियो बनाय
ता चढ़ि मुल्ला बाग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।
मो को कहां ढूंढो बंदे, मैं तो तेरे पास में
न मैं बकरी न मैं भेंड़ी, न छूरी गंडास में
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे-कैलाश में
न तो कौनों क्रियाकर्म में, नहिं जोग बैराग में ……
अईसने अपन बिरोधी मन ल कहिस के

मेरा तेरा मनवा कैसे एक होई रे
मैं कहता हौं आंखन देखि, तू कागद की लेखी रे
भगवान ल पाय खातिर का करना चाही, येकर बर अपन अनुभव ल साधु-समाज बर साझा करिस, जइसे
१, पिछे लागा जाइ था, लोक बेद के सांथ ।
आगे थे सतगुरू मिला, दीपक दिया हांथ ।।
२, मन रे जागत रहिये भाई ।।
गाफिल होई बसत मति खोवै, चोर मुसै घर जाई ।।
३, हम तो एक एक कर जाना।।
दोई कहै तिनही को दो-जख, जिन नाहिन पहिचाना ।। …
कबीर दास जी के उलटबांसी ह घलो बड़ परसिद्ध होईस, जईसे
एक अचंभा मैंनें देखा नदिया लागी आग।
अंबर बरसै धरती भीजै, यहु जाने सब कोई।
धरती बरसै अंबर भीजै, बूझे बिरला कोई।।
गावनहारा कदे न गावै, अनबोल्या नित गावै।
नटवर पेखि पेखना पेखै, अनहद बेन बजावै।। …..
धरम के नाव म लड़ईया मन बर कबीर दास जी कहिस
एकै पवन एक ही पानी, एक जोति संसारा।
एक ही खाक धड़े सब भांडे, एक ही सिरजनहारा।।…
संसार के असारता बर घलो कबीर दास जी कहिस के
रहना नहि देस बिराना हे।
यह संसार कागद की पुड़िया, बूंद परे घुल जाना है।
यह संसार कांट की बाड़ी, उलझ उलझ मरि जाना है।
यह संसार झार और झांखर, आग लगे बरि जाना है। …
कबीर दास जी ह अपन जिनगी के पूरा समय ल कांसी म बितईस अउ अाखरी समय ल मगहर म बितईस, काबर के ओ समय ये कहे जाय के कांसी म जउन भी मरथे वो ह मुक्ति पाथे, अउ मगहर म जउन मरथे वो ह वो घोर नरक भोगथे, ये भरम ल टोरे खातिर कबीर दास जी ह मगहर म मरना पसंद करिस।
कबीर दास जी ल हिंदु-मुसलमान दुनों मन अपन जाति के मानय, त कहे जाथे के जब कबीर दास जी ह अपन सरीर ल छोड़िस त ओकर सरीर के जघा म बहुत अकन फूल मिलीस, जेला हिंदु मुसलमान दुनो मन बांट लिन अउ अपन अपन रीत के मुताबिक माटी दीन।
कबीर दास जी के महिमा के बखान नइ करे जा सकय, समाज म समता लाय खातिर वो ह अपन पूरा जिनगी ल लगा दिस, संगेसंग भगवान ल कईसे पाय जा सकत हे, ओकर रद्दा बतईस। आवव ओकर जनमदिन म हमन कसम खईन के समाज म समता भाव ल रखबोन अउ
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।।
इही भाव ल संग रख के हमन अपन अवईया जिनगी ल बितईन।

ललित वर्मा “अंतर्जश्न”
छुरा







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